पूरे विश्वं में सितंबर माह 'अल्जाइमर्स माह' (Alzheimer's Month) और 21 सितम्बर 'अल्जाइमर दिवस' (Alzheimer Day) के रूप में मनाया जाता है. आमतौर पर 'अल्जाइमर' बुजुर्गों में होने वाली भूलने की बीमारी है, जो मस्तिष्क से जुड़ी होती है. 'अल्जाइमर' से ग्रसित व्यक्ति हर बात भूलने लगता है. यहाँ तक कि कुछ समय पूर्व घटना उसे याद नहीं रहती, नाम और पते याद नहीं रहते, जीवन से जुड़ी घटनाएँ याद नहीं रहती. आमतौर से यह पाया गया है कि 'अल्जाइमर' से ग्रसित व्यक्ति अपने जीवन के अन्तिम पड़ाव पर पहुँच जाता है. विश्वं में भूलने की बीमारी से ग्रसित 70 प्रतिशत बुजुर्ग 'अल्जाइमर' रोग के शिकार होते हैं. इस वर्ष की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्वं में 'अल्जाइमर' से ग्रसित व्यक्तियों की संख्या 4.6 करोड़ से अधिक है और इस रोग से ग्रसित मरीजों की संख्या हर 20 वर्षों में दुगुनी हो रही है. भारत में एक अनुमान के अनुसार इस रोग से ग्रसित मरीजों की संख्या लगभग 40 लाख है.
यह बीमारी क्यों होती है? इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं पता, फिर भी ऐसा माना जाता है कि बढ़ती उम्र और आनुवंशिक कारणों से यह बीमारी होती है जिसमें मस्तिष्क की याददाश्त से जुड़ी तंत्रिकाएँ निष्क्रिय होने लगती हैं. इस बीमारी का प्रारंभिक लक्षण हाल की घटनाओं को भूलने से लगता है. समस्या जब बढ़ती है तो मरीज़ में बोलने की समस्या, आत्म-विश्वास में कमी, मूड में बदलाव, अपनी देखभाल ख़ुद करने में परेशानी आदि देखने को मिलती हैं. इस बीमारी से पीड़ित मरीज सामान रखकर भूल जाते हैं. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे यह रोग भी बढ़ता जाता है. याददाश्त क्षीण होने के अलावा रोगी की सोच-समझ, भाषा और व्यवहार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस बीमारी से ग्रसित लोगों को देखभाल की जरुरत होती है, इसलिए परिजनों का दायित्व बनता है कि वे उचित देखभाल करें. परिजनों की उचित देखभाल ही ऐसे बुजुर्ग को लम्बी आयु प्रदान करते हैं. यह परिजनों का दायित्व है कि इस रोग के उपचार के लिए इस रोग से ग्रसित बुजुर्ग की दिनचर्या को सहज व नियमित बनाएं, समय पर भोजन, नाश्ता, बटन रहित कुर्ता पजामा, सुरक्षा आदि पर विशेष ध्यान दें. बुजुर्ग का कमरा खुला व हवादार हो. इस रोग से ग्रसित बुजुर्ग की आवश्यकता की वस्तुएं एक स्थान पर रखें. इस रोग से इलाज के लिए कुछ ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं, जिनके सेवन से इस रोग से ग्रसित बुजुर्गों की याददाश्त और उनकी सूझबूझ में सुधार होता है. ये दवाएं रोगी के लक्षणों की तीव्रता को कम करने या दूर करने में सहायक होती हैं.
भारतीय समाज में इस बीमारी के बारे में ज्यादा जागरुकता नहीं है. आमतौर पर बीमारी के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. जरूरत है कि बीमारी के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज ना किया जाए, बल्कि उचित डाक्टरी परामर्श लिया जाए.
(संकलित सामग्री)
- केशव राम सिंघल
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