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Keshav Ram Singhal
keshavsinghalajmer@gmail.com
krsinghal@rediffmail.com

Sunday, 11 December 2022

आत्मिक स्नेह

आत्मिक स्नेह

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"अम्मा! आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है।" डाकिया बाबू ने अम्मा को देखते ही अपनी साईकिल रोक कर कहा।


बूढ़ी अम्मा ने जैसे ही सुना उन्होंने अपने आँखों पर चढ़े चश्मे को उतार अपने आँचल से साफ कर वापस पहना। उनकी बूढ़ी आँखों में अचानक एक चमक सी आ गई। वह बोली,"बेटा! पहले जरा बात करवा दो।"

अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से डाकिये की ओर देखा था लेकिन उसने अम्मा को टालना चाहा और कहा, "अम्मा! इतना समय नहीं रहता मेरे पास कि हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूँ।"

लेकिन अम्मा उससे प्रार्थना करने लगी, "बेटा! हर बार तुम बात करा दिया करते हो। बस थोड़ी देर की ही तो बात है। इस बार भी करा दो।"

"अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!" यह कहते हुए डाकिये ने रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल किया और कहा, "लो अम्मा! बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना, मेरे पैसे लगते हैं।" यह कह उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया।

डाकिये के हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल पूछती अम्मा मिनट भर बात कर ही संतुष्ट हो गई। बूढ़ी अम्मा के झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान छा गई।

"पूरे हजार रुपए हैं अम्मा!" यह कहते हुए उस डाकिये ने सौ-सौ के दस नोट अम्मा की ओर बढ़ा दिए। रुपए हाथ में ले गिनती करती अम्मा ने उसे ठहरने का इशारा किया।

"अब क्या हुआ अम्मा?"

"यह सौ रुपए रख लो बेटा!"

"क्यों अम्मा?" डाकिये ने आश्चर्य से पूछा।

"हर महीने रुपए लाने के साथ-साथ तुम मेरे बेटे से मेरी बात भी करवा देते हो, कुछ तो खर्चा तुम्हारा होता होगा ना!"

"अरे नहीं अम्मा! रहने दीजिए।"

वह लाख मना करता रहा, लेकिन अम्मा ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए और वह वहाँ से वापस जाने को मुड़ गया।

अपने घर में अकेली रहने वाली अम्मा भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।

वह डाकिया अभी कुछ कदम ही वहाँ से आगे बढ़ा ही होगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उस कस्बे में उसके जान पहचान का एक चेहरा सामने खड़ा था। मोबाइल फोन की दुकान चलाने वाले रामप्रवेश को सामने पाकर वह हैरान हुआ।

"भाई साहब आप यहाँ कैसे? आप तो इस समय अपनी दुकान पर होते हैं ना?"

"मैं यहाँ किसी से मिलने आया था! लेकिन मुझे आपसे कुछ पूछना है।"

रामप्रवेश की निगाहें उस डाकिए के चेहरे पर टिक गई।

"जी पूछिए भाई साहब!" डाकिये ने कहा।

"भाई! आप हर महीने ऐसा क्यों करते हैं?"

"मैंने क्या किया है भाई साहब?"

रामप्रवेश के सवालिया निगाहों का सामना करता वह डाकिया तनिक घबरा गया।

"हर महीने आप इस अम्मा को अपनी जेब से रुपए भी देते हैं और मुझे फोन पर इनसे इनका बेटा बन कर बात करने के लिए मुझे भी रुपए देते हैं! ऐसा क्यों?"

रामप्रवेश का सवाल सुनकर डाकिया सकपका गया, मानो अचानक उसका कोई बहुत बड़ा झूठ पकड़ा गया हो, लेकिन अगले ही पल उसने सफाई देते हुए कहा, "मैं रुपए इन्हें नहीं, अपनी अम्मा को देता हूंँ।"

"मैं समझा नहीं?" रामप्रवेश उस डाकिये की बात सुनकर हैरान हुआ लेकिन डाकिया आगे बताने लगा, "इनका बेटा कहीं बाहर कमाने गया था और हर महीने अपनी अम्मा को हजार रुपए का मनी ऑर्डर भेजता था लेकिन एक दिन मनी ऑर्डर की जगह इनके बेटे के एक दोस्त की चिट्ठी अम्मा के नाम आई थी।"

उस डाकिए की बात सुनते रामप्रवेश की जिज्ञासा बढ़ गई। "कैसे चिट्ठी? क्या लिखा था उस चिट्ठी में?" रामप्रवेश ने पूछा।

"संक्रमण की वजह से उनके बेटे की जान चली गई! अब वह नहीं रहा।"

"फिर क्या हुआ भाई?"

रामप्रवेश की जिज्ञासा बढ़ गई लेकिन डाकिए ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, "हर महीने चंद रुपयों का इंतजार और बेटे की कुशलता की उम्मीद करने वाली इस अम्मा को यह बताने की मेरी हिम्मत नहीं हुई! मैं हर महीने अपनी तरफ से इनका मनीआर्डर ले आता हूंँ।"

"लेकिन यह तो आपकी अम्मा नहीं है ना?"

"मैं भी हर महीने हजार रुपए भेजता था अपनी अम्मा को! लेकिन अब मेरी अम्मा भी नहीं रहीं। अब यही मेरी अम्मा हैं।" यह कहते हुए उस डाकिये की आँखे भर आई।

हर महीने डाकिये से रुपए लेकर अम्मा का बेटा बनकर बात करने वाला रामप्रवेश उस डाकिये का एक अजनबी बूढ़ी अम्मा के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया। फिर कुछ पल बाद बोला, "मुझे बेटा बनने के लिए रुपये मत दिया करो। बल्कि हर महीने पाँच सौ रुपये मुझसे ले लिया करो।" और यह कहकर कुछ रुपये उसने डाकिए की मुट्ठी में पकड़ा दिए।

साभार - अज्ञात लेखक
(केशव राम सिंघल द्वारा संकलित और सम्पादित)



















चित्र प्रतीकात्मक - साभार इंटरनेट  

वरिष्ठ नागरिकों को अधिक वार्तालाप करना चाहिए??

वरिष्ठ नागरिकों को अधिक वार्तालाप करना चाहिए??

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परिवार के लोग चाहते हैं कि बूढ़े-बुजुर्ग उनके काम में टाँग ना अड़ाए, नुक्ता-चीनी ना करें और कुछ बोले नहीं। यदि वे ज्यादा बोलते हैं, तो सभी उनपर कटाक्ष करते हैं, और परिणामस्वरूप वरिष्ठ नागरिक बातचीत करना बंद कर देते हैं। लोगों का कटाक्ष और उनकी बात सुना न जाना, उन्हें गुमसुम रहने पर मजबूर कर देता है।

लेकिन डॉक्टरों के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों द्वारा वार्तालाप करना वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक वरदान है। कुछ डॉक्टरों का मत है कि वरिष्ठ नागरिकों को अधिक बातचीत करनी चाहिए। अधिक बातचीत करना ही स्मृति हानि रोकने का एक तरीका प्रतीत होता है।


वरिष्ठ नागरिकों द्वारा बातचीत करने के तीन फायदे बताए जाते हैं -

पहला - बोलने से मस्तिष्क सक्रिय होता है और मस्तिष्क की सक्रियता बढ़ती है, क्योंकि भाषा और विचार एक दूसरे से संवाद करते हैं, खासकर जब बातचीत होती है तो स्वाभाविक रूप से सोचने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जो बोलने वाले की याददाश्त को बढ़ाता है। जो वरिष्ठ नागरिक बातचीत नहीं करते और गुमसुम रहते हैं, ऐसा कहा जाता है कि उनकी याददाश्त कम होने की संभावना अधिक होती है।

दूसरा - बोलने से तनाव दूर होता है। बोलना मानसिक बीमारियों से बचाता है और स्वतः ही इससे तनाव कम होता है। अकसर देखा गया है कि कुछ वरिष्ठ नागरिक बोलते नहीं, प्रतिक्रिया नहीं देते और बहुत सी बातों को अपने दिल में दफन कर देते हैं। फलस्वरूप वे घुटन और असहजता महसूस करते हैं। यही घुटन और असहजता वरिष्ठ नागरिक की याददाश्त कमजोर कर देती है। परिवार के लोगों को चाहिए कि वे कि वरिष्ठ नागरिकों को बातचीत करने का अवसर दें।

तीसरा - बोलने से चेहरे की माँसपेशियों का व्यायाम होता है, माँसपेशियाँ सक्रिय होने के साथ-साथ फेफड़ों की क्षमता बढ़ सकती है, साथ ही आँख और कान के नुकसान के जोखिम को कम कर सकती है। बातचीत करने से चक्कर आना, सिरदर्द होना और बहरापन होना जैसे जोखिम कम हो सकते हैं।


'भूलने का रोग' ही अल्जाइमर रोग है। इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना तथा फिर इसकी वजह से सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति प्रारम्भ हो जाना आदि शामिल हैं।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्मृति हानि या अल्जाइमर रोग से बचने का एकमात्र तरीका है कि वे चिकित्सीय उपाय के साथ-साथ अधिक से अधिक बातचीत करें, लोगों के साथ सक्रिय रूप से संवाद करें और हल्का शारीरिक व्यायाम करें


आपको यह जानकारी कैसी लगी? कृपया प्रतिक्रिया दें / टिप्पणी लिखें।

सादर शुभकामनाएँ,

केशव राम सिंघल

चित्र प्रतीकात्मक - साभार इंटरनेट


May be a cartoon of one or more people

Monday, 7 October 2019

स्विस समय बैंक (Swiss Time Bank)



स्विस समय बैंक (Swiss Time Bank)
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स्विट्जरलैंड में पढ़ने वाली एक छात्रा ने बताया -

स्विट्जरलैंड में पढ़ाई के दौरान, मैंने अपने स्कूल के पास एक मकान किराए पर लिया था। मकान मालकिन क्रिस्टीना एक 67 वर्षीय एकलौती बूढ़ी महिला थी, जो सेवानिवृत्त होने से पहले एक माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक के रूप में काम कर चुकी थी। स्विट्जरलैंड की पेंशन बहुत अच्छी है, उसे बाद के वर्षों में भोजन और आश्रय के बारे में चिंता नहीं करने के लिए पर्याप्त है। एक दिन मुझे पता चला कि उसने एक 87 वर्षीय एकल बूढ़े व्यक्ति की देखभाल करने का काम पाया है। मैंने उस महिला से पूछा कि क्या वह पैसे के लिए काम कर रही है। उसके जवाब ने मुझे चौंका दिया: "मैं पैसे के लिए काम नहीं कर रही, बल्कि मैं अपना समय 'समय बैंक' में रख रही हूँ, और जब मैं अपने बुढ़ापे में चल नहीं सकूंगी, तो मैं इसे वापस ले सकती हूँ।"

पहली बार जब मैंने "समय बैंक" की इस अवधारणा के बारे में सुना, तो मैं बहुत उत्सुक हुई और मकान मालकिन से और पूछा। "समय बैंक" की अवधारणा स्विस फेडरल सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय द्वारा विकसित एक वृद्धावस्था पेंशन कार्यक्रम है। लोगों ने बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए 'समय' बचा लिया और जब वे बूढ़े हो गए, या बीमार या आवश्यक देखभाल के लिए जब जरुरत हुई वे इसे वापस ले सकते हैं। आवेदक स्वस्थ होना चाहिए, संवाद करने में अच्छा और प्यार से भरा होना चाहिए। रोज उन्हें बुजुर्गों की देखभाल करनी होती है, जिन्हें मदद की ज़रूरत होती है। उनके सेवा घंटों को सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के व्यक्तिगत 'समय' खातों में जमा किया जाता है। वह सप्ताह में दो बार काम पर जाती थीं, हर बार दो घंटे बिताती थीं, बुजुर्गों की मदद करती थीं, खरीदारी करती थीं, उनके कमरे की सफाई करती थीं, उन्हें धूप सेंकने के लिए ले जाती थीं, उनसे बातें करती थीं।

नियमानुसार सेवा के एक वर्ष के बाद, "समय बैंक" सेवा देने वाले व्यक्ति के काम के घंटे की गणना करता है और उसे एक "समय बैंक कार्ड" जारी करता है। जब उसे अपनी देखभाल करने के लिए किसी की आवश्यकता होती है, तो वह "समय और ब्याज" को वापस लेने के लिए अपने "समय बैंक कार्ड" का उपयोग कर सकती है। सूचना सत्यापन के बाद, "समय बैंक" अस्पताल या उसके घर पर उसकी देखभाल करने के लिए स्वयंसेवकों को नियुक्त करता है।

एक दिन, मैं स्कूल में थी और मकान मालकिन ने फोन किया और कहा कि वह खिड़की से पोंछा लगा रही थी और वह स्टूल से गिर गई। मैंने जल्दी से छुट्टी ली और उसे इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया। मकान मालकिन का टखना टूट गया था और उसे थोड़ी देर बिस्तर पर रहने की जरूरत पड़ी। जब मैं उसकी देखभाल के लिए अपने स्कूल से छुट्टी के लिए आवेदन करने की तैयारी कर रही थी, तो मकान मालकिन ने मुझसे कहा कि मुझे उसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसने पहले ही "समय बैंक" को एक निकासी अनुरोध प्रस्तुत कर दिया है। दो घंटे से भी कम समय में "समय बैंक" ने एक नर्सिंग कर्मी को मकान मालकिन की देखभाल के लिए भेज दिया।

अगले एक महीने तक, देखभाल नर्सिंग कर्मी ने मकान मालकिन की रोज़ देखभाल की, उसके साथ बातचीत की और उसके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया। देखभालकर्ता की सावधानीपूर्वक देखभाल के तहत, मकान मालकिन ने जल्द ही अपना स्वास्थ्य ठीक कर लिया। ठीक होने के बाद, मकान मालकिन "काम" पर वापस चली गई। उसने कहा कि वह "समय बैंक" में अधिक समय बचाने का इरादा रखती है, क्योंकि वह अभी भी स्वस्थ है।

आज, स्विट्जरलैंड में, बुढ़ापे का समर्थन करने के लिए "समय बैंकों" का उपयोग एक आम बात बन गई है। यह न केवल देश के पेंशन खर्च को बचाता है, बल्कि अन्य सामाजिक समस्याओं को भी हल करता है। कई स्विस नागरिक इस तरह के वृद्धावस्था पेंशन के बहुत समर्थक हैं।

स्विस पेंशन संगठन द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि स्विस के आधे से अधिक लोग भी इस प्रकार की वृद्धावस्था देखभाल सेवा में भाग लेना चाहते हैं। स्विस सरकार ने "समय बैंक" पेंशन योजना का समर्थन करने के लिए कानून भी पारित किया। वर्तमान में एशियाई देशों में "घरों में अकेले रहने वाले बूढ़े लोगों" की संख्या बढ़ रही है और यह धीरे-धीरे एक सामाजिक समस्या बन गई है। स्विट्जरलैंड शैली "समय बैंक" पेंशन हमारे लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

(उपर्युक्त घटना और 'समय बैंक' अवधारणा की जानकारी के लिए बैंक ऑफ़ इंडिया के पूर्व महाप्रबंधक श्री मृत्युंजय गुप्ता का आभार)

टाइम्स ऑफ़ इंडिया 06 अक्टूबर 2018 में छपी एक खबर के अनुसार विशेषज्ञों के एक पैनल, जो विकलांगता और बुजुर्ग व्यक्तियों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के मुख्य समूह का हिस्सा है, ने सिफारिश की है कि भारत को स्विट्जरलैंड द्वारा शुरू की गई "समय बैंक" योजना को अपनाना चाहिए, ताकि जो वरिष्ठ नागरिक, अपने परिवार से बिना किसी सहारे के अकेले रह रहे हैं, की देखभाल हो सके।

कृपया इस अवधारणा को अधिक से अधिक साझा करें, ताकि भारत सरकार भी इस तरह की योजना को शीघ्र लागू करे।

- केशव राम सिंघल


Monday, 19 August 2019

बढ़ती उम्र .... गरिमा के साथ जीने के लिए कुछ जरूरी बातें


बढ़ती उम्र .... गरिमा के साथ जीने के लिए कुछ जरूरी बातें

भारतीय संयुक्त परिवार-प्रथा में बुजुर्गों को सहारा और इज्जत मिलती थी। बुजुर्गों की देखभाल में कोई समस्या नहीं थी, पर यह बात अब पुरानी बात हो गयी है। काफी समय से भारतीय परिवार अब एकल परिवार हो गए हैं। भारतीय परिवारों में बुजुर्गों की देखभाल वर्तमान में एक समस्या है, जिसे अनसुलझा छोड़ दिया गया है। इसलिए इस सन्दर्भ में बुढ़ापे के लिए निम्न नियमों पर कृपया गौर करें।

पहला, हम अपने बच्चों पर बोझ न बने और कोशिश करें कि उनके साथ न रह कर स्वतन्त्र रहें। यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम अपने लिए ऐसा निवास खोजे जो हमें सुरक्षित और आरामदायक बनाए रखे। इसके लिए हम रिटायरमेंट विला में फ्लैट खरीद सकते हैं, एक ही परिसर में करीबी दोस्तों के साथ मकान खरीद कर या किराए पर रह सकते हैं, या फिर एक ऐसे स्वतंत्र घर में रह सकते हैं, जहाँ पास में हमारे बच्चे रहते हों। हमारी पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि हम ऐसी जगह पर बसे जो स्वतंत्र रहने में हमें सक्षम बनाएं, अच्छी रोजमर्रा की संगति प्रदान करे और जिसका कम खर्चीला रखरखाव हो।

दूसरा, हमारे बच्चे उन तरीकों से मदद और सहायता करने के लिए तैयार हो सकेंगे, जो उनके जीवन को प्रभावित नहीं करे। हमारे पक्ष में नहीं होने के बारे में बच्चों को भी कोई अपराध-बोध नहीं होगा। यदि वे अपनी सुविधानुसार यात्रा की कोई योजना बनाते हैं, तो हमें इसका अधिकतम लाभ उठाना चाहिए, बजाए यह सोचकर कि वे हमारी सेवा नहीं करते हैं। यदि वे आर्थिक योगदान करते हैं, तो आने वाले घमंड के बिना हमें यह स्वीकार करना चाहिए। हमें अपनी हकदारी नहीं जतानी चाहिए।

तीसरा, हमें चिकित्सा सुविधा और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने में कमी नहीं करनी चाहिए। साठ साल की उम्र के बाद व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। चेहरे पर झुर्रियाँ और स्वास्थ्य से जुडी कई समस्याएँ शुरू हो जाती हैं। फिट और स्वस्थ रहना एक ऐसा लक्ष्य है जिसे हमें हल्के में नहीं लेना चाहिए। हालांकि, हमें आक्रामक 'आधुनिक' स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च नहीं करना चाहिए जो हमें अस्पताल में भर्ती करती हैं और जो हमारी जीवन-समर्थन प्रणाली को अपमानित करती हैं। इसके बजाय हमें प्रशामक (शांतिपूर्ण) देखभाल-चिकित्सा को स्वीकार करना चाहिए। यदि हम किसी रोग से ग्रसित हैं तो हमें डॉक्टर के परामर्श के अनुसार अपना इलाज लेना चाहिए। हमें पर्याप्त नींद लेनी चाहिए तथा कसरत, ध्यान और योग करने की आदत बनानी चाहिए। इस उम्र में नियमित टहलना एक अच्छी आदत है।

चौथा, जब तक हम जीते हैं हमें अपने जीवन में सकारात्मक उद्देश्य प्राप्त करना चाहिए। हमें उन लोगों के साथ, जो समाज के साथ जुड़े हुए हैं, जुड़ना, लिखना, सेवा करना, अनुवाद करना, विभिन्न गतिविधियों भाग लेना और सामाजिक स्वयंसेवक बनाना चाहिए, जिन्हें इन सेवाओं की आवश्यकता हो सकती है। हमारे आसपास की दुनिया में हमारी सक्रिय भागीदारी हमें ऊर्जा और उत्साह प्रदान करेगी।

पाँचवाँ, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी संपत्ति हमारे अपने जीवनकाल में हमारे द्वारा उपयोग की जाती है। अपनी विरासत छोड़ने से पहले अर्थात मृत्यु से पूर्व, खुद के लिए धन आवंटित करना, हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। पछतावे का कोई मतलब नहीं है कि सेवानिवृत्ति पर हमारे पास क्या है और यह चिंता करना कि क्या यह पर्याप्त है। एक समझदार निवेश योजना और एक यथार्थवादी जीवन शैली की पसंद के साथ, जो हमारे पास जमा धनराशि और पेंशन राशि से मेल खाता हो, हमें अच्छी तरह रहना चाहिए।

छठा, हमें अपने आहार पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है। खाने में पोषक चीजें, जैसे ताजा फल-सब्जियों, शामिल करें। तले हुए भोजन से परहेज करें और भोजन में कम नमक और चीनी का प्रयोग भी सीमित करें।

सातवाँ, हमें जमाखोरी करने के बजाय देने (दान) पर भी ध्यान देना चाहिए। जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हम महसूस करते हैं कि सामग्री और चीजें हमारी भलाई के लिए बहुत कम हैं। हालांकि उम्र के 70 और 80 वें दशक में यह भावना तीव्र हो सकती है। फिर भी हम पाते हैं कि अच्छी संगत, अच्छे भोजन, संगीत और आपसी वार्तालापों से हमें खुशी मिलती है, इस प्रकार हम देखेंगे कि सबसे अच्छी चीजें जो जीवन के लिए हैं, उन्हें पैसे या सामग्री की आवश्यकता नहीं है और हमारे पास देने के लिए बहुत कुछ है। परोपकार शुरू होना चाहिए जब वह बोध अंदर आ जाए। जब भी हम किसी की सहायता करेंगे तो हमें आत्मिक सुख का अनुभव होगा।

एक महत्वपूर्ण बात - बेहतर सुरक्षा के लिए, हमें एक आकर्षक डिजाइन वाली स्टाइलिश छड़ी खरीदनी और उपयोग करनी चाहिए, ताकि हम गिरने से अपना बचाव कर पाएं।

शुभकामनाओं सहित,

केशव राम सिंघल
(संकलित सामग्री)

Sunday, 24 February 2019

बैंकों में वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता देने वाले समर्पित काउंटर की सुविधा


बैंकों में वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता देने वाले समर्पित काउंटर की सुविधा

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने सभी बैंकों को निर्देश दिए हैं कि बैंकों को वरिष्ठ नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी शाखाओं में वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता देने वाले समर्पित काउंटर की सुविधा उपलब्ध करवानी होगी।

वरिष्ठ नागरिकों की जानकारी के लिए बताना चाहते हैं कि इस संबंध में रिज़र्व बैंक ने अखबारों में विज्ञापन छपवाएं हैं। कृपया सुनिश्चित करें कि आपके बैंक में इस तरह की सुविधा मिल रही है या नहीं। यदि नहीं मिल रही है तो रिज़र्व बैंक को ईमेल से लिखें। रिज़र्व बैंक का ईमेल आईडी rbikehtahai@rbi.org.in है।

कृपया यह जानकारी वरिष्ठ नागरिक मित्रों से साझा करें।

शुभकामनाओं सहित,

केशव राम सिंघल

Saturday, 9 February 2019

National Programme for Health Care of the Elderly (NPHCE)


National Programme for Health Care of the Elderly (NPHCE)
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This programme aims to provide specialized medical and healthcare facilities for the elderly across India. A free service for all Indian citizens over the age of 60 years, it is delivered through the state government’s healthcare network namely district hospitals, community and primary health centres.

PLEASE CLICK HERE for more details about the NPHCE.

Best wishes,

Keshav Ram Singhal

Monday, 1 October 2018

अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस


*अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस*

प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर का दिन अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाने की शुरुआत सन् 1990 में हुई थी। विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार और अन्याय को रोकने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 14 दिसंबर 1990 को यह निर्णय लिया गया। तब यह तय किया गया कि हर साल 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाया जाएगा, और 1 अक्टूबर 1991 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस या अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया गया।

वर्तमान में पूरे विश्व में लगभग सत्तर करोड़ लोग 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं। 2050 तक, 2 अरब लोग, दुनिया की आबादी का 20 प्रतिशत, 60 या उससे अधिक उम्र के होंगे। वृद्ध लोगों की संख्या में वृद्धि सबसे ज्यादा विकासशील देशों में होगी। वरिष्ठ नागरिकों की विशेष जरूरतों और उनके द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।

*भारत में बुजुर्ग पेंशन राशि में बढ़ोतरी और स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में 'आयुष्मान भारत योजना' का लाभ प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक को मिलना चाहिए*

वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार होना ही चाहिए, इसलिए यह जरूरी है कि वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली पेंशन की राशि में बढ़ोतरी हो। यह अत्यंत दुःख की बात है कि अभी भी कई राज्यों में मात्र दो सौ रुपये प्रतिमाह या कुछ अधिक (पर हजार रुपये से कम) बुजुर्गों को पेंशन दी जाती है। पेंशन राशि ऐसी होनी चाहिए, जिससे बुजुर्ग अपना गुजारा सम्मानपूर्वक कर सके। इसके अलावा, बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या बढ़ती आयु के साथ गिरते स्वास्थ्य की होती है, स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में 'आयुष्मान भारत योजना' का लाभ प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक को मिलना चाहिए, अतः भारत सरकार की 'आयुष्मान भारत योजना' में सभी वरिष्ठ नागरिकों को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि इस योजना का लाभ सभी वरिष्ठ नागरिकों को मिल सके।

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर सभी वरिष्ठ नागरिकों को बधाई और शुभकामनाएं,

केशव राम सिंघल